परिभाषाएं
2. इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,–
(1) ''अग्रिम कर'' से अध्याय 17ग के उपबंधों के अनुसार संदेय अग्रिम कर अभिप्रेत है;
(1क) ''कृषि आय'' से अभिप्रेत है–
(क)ऐसी भूमि से, जो भारत में स्थित है और कृषि के प्रयोजनों के लिए उपयोग में लार्इ जाती है, प्राप्त कोर्इ लगान या राजस्व;
(ख)कोर्इ ऐसी आय जो ऐसी भूमि से–
(i) कृषि द्वारा; या
(ii) खेतिहर द्वारा या वस्तु रूप में लगान के प्राप्तिकर्ता द्वारा ऐसी प्रक्रिया करने से, जो किसी खेतिहर या वस्तु रूप में लगान के प्राप्तिकर्ता द्वारा उगार्इ या प्राप्त की गर्इ उपज को बाजार ले जाने योग्य बनाने में उसके द्वारा आमतौर पर प्रयोग में लार्इ जाती है; या
(iii) खेतिहर या वस्तु रूप में लगान के प्राप्तिकर्ता द्वारा उगार्इ या प्राप्त की गर्इ किसी ऐसी उपज के बेचने से जिसकी बाबत इस उपखंड के पैरा (ii)में वर्णित प्रक्रिया से भिन्न कोर्इ प्रक्रिया नहीं की गर्इ है,
प्राप्त हुर्इ है;
(ग)कोर्इ ऐसी आय जो किसी भूमि के लगान या राजस्व के प्राप्तिकर्ता के स्वामित्व तथा अधिभोग में के अथवा किसी भूमि के, जिसकी या जिसकी उपज की बाबत उपखंड (ख) के पैरा (ii) और (iii) में वर्णित कोर्इ प्रक्रिया की जाती है, खेतिहर या वस्तु रूप में लगान के प्राप्तिकर्ता के अधिभोग में के किसी भवन से प्राप्त हुर्इ है :
परन्तु यह तब जबकि–
(i) वह भवन उस भूमि पर है या उसके ठीक निकट है और ऐसा भवन है जिसकी आवश्यकता लगान या राजस्व के प्राप्तिकर्ता को या खेतिहर को, या वस्तु रूप में लगान के प्राप्तिकर्ता को, उस भूमि से उसका संबंध होने के कारण, निवास गृह के रूप में अथवा भण्डार गृह या अन्य बाहरी भवन के रूप में है; तथा
(ii) उस भूमि पर या तो भारत में भूराजस्व निर्धारित है या वह ऐसे स्थानीय रेट के अधीन है जो सरकार के अधिकारियों द्वारा उस रूप में निर्धारित और एकत्र किया जाता है या जहां भूमि पर ऐसा भूराजस्व निर्धारित नहीं है या वह ऐसे स्थानीय रेट के अधीन नहीं है वहां वह–
(क) किसी ऐसे क्षेत्र में स्थित नहीं है जो किसी नगरपालिका (चाहे वह नगरपालिका, नगर निगम, अधिसूचित क्षेत्र समिति, शहरी क्षेत्र समिति, शहर समिति या किसी अन्य नाम से ज्ञात हो) या छावनी बोर्ड की अधिकारिता में हो और जिसकी जनसंख्या, दस हजार से कम न हो; या
(ख) एरियल रूप से मापित दूरी के भीतर किसी क्षेत्र में,–
(I) जो मद (क) में निर्दिष्ट किसी नगरपालिका या छावनी बोर्ड की स्थानीय सीमाओं से दो किलोमीटर से अधिक न हो और जिसकी जनसंख्या दस हजार से अधिक किन्तु एक लाख से अधिक नहीं है; या
(II) जो मद (क) में निर्दिष्ट किसी नगरपालिका या छावनी बोर्ड की स्थानीय सीमाओं से छह किलोमीटर से अधिक न हो और जिसकी जनसंख्या एक लाख से अधिक किन्तु दस लाख से अधिक नहीं है; या
(III) जो मद (क) में निर्दिष्ट किसी नगरपालिका या छावनी बोर्ड की स्थानीय सीमाओं से आठ किलोमीटर से अधिक न हो और जिसकी जनसंख्या दस लाख से अधिक है।
स्पष्टीकरण 1.–शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि इस धारा के खंड (14) के उपखंड (iii) की मद (क) या मद (ख) में उल्लिखित किसी भूमि के अंतरण से होने वाली कोर्इ आय, ऐसी भूमि से प्राप्त राजस्व में शामिल नहीं होगी और उसके बारे में यह समझा जाएगा कि वह कभी भी उसमें शामिल नहीं थी।
स्पष्टीकरण 2.–शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि उपखंड (ग) में निर्दिष्ट ऐसे किसी भवन या भूमि से प्राप्त आय जो उपखंड (क) या उपखंड (ख) के अन्तर्गत आने वाले कृषि से भिन्न प्रयोजन के लिए (जिसके अंतर्गत आवासीय प्रयोजन के लिए या किसी कारबार या किसी वृत्ति के प्रयोजन के लिए किराये पर देना भी है) किसी भवन या भूमि के प्रयोग से उद्भूत हो कृषि आय नहीं होगी;
स्पष्टीकरण 3.–इस खंड के प्रयोजनों के लिए, किसी नर्सरी में उगाए गए पौधों अथवा पौध से हुर्इ किसी आय को कृषि आय समझा जाएगा;
स्पष्टीकरण 4.–उपखंड (ग) के परंतुक के खंड (ii) के प्रयोजनों के लिए, "जनसंख्या" से उस अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के अनुसार जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े पूर्ववर्ष के प्रथम दिन के पूर्व प्रकाशित हो चुके हैं;
(1ख) कंपनियों के संबंध में 'समामेलन' से अभिप्रेत है एक या अधिक कंपनियों का किसी अन्य कंपनी के साथ ऐसी रीति से विलय अथवा एक कंपनी बनाने के लिए दो या अधिक कंपनियों का ऐसी रीति से विलय (ऐसी कंपनी या कंपनियों को जिसका या जिनका ऐसे विलय किया जाता है उसे या उन्हें समामेलक कंपनी या कम्पनियों के रूप में, और उस कंपनी को जिसके साथ उसका या उनका विलय किया जाता है या जो विलय के फलस्वरूप बनार्इ जाती है समामेलित कंपनी कहा गया है) कि–
(i) समामेलक कंपनी या कंपनियों की ऐसी सब संपत्ति, जो समामेलन से ठीक पहले उसकी या उनकी थी, समामेलन के फलस्वरूप समामेलित कंपनी की संपत्ति हो जाती है;
(ii) समामेलक कंपनी या कंपनियों के ऐसे सब दायित्व, जो समामेलन से ठीक पहले उसके या उनके थे, समामेलन के फलस्वरूप समामेलित कंपनी के दायित्व हो जाते हैं;
(iii) ऐसे शेयरधारक जो समामेलक कंपनी या कंपनियों में कम से कम तीन-चौथार्इ मूल्य के शेयरों को (जो समामेलन के ठीक पूर्व समामेलित कंपनी या उसकी समनुषंगी कंपनी द्वारा या उसके लिए किसी नामनिर्देशिती द्वारा उनमें पहले ही धारित शेयरों से भिन्न हैं) धारण करते हैं, समामेलन के फलस्वरूप समामेलित कंपनी के शेयरधारक हो जाते हैं,
किंतु यह तब नहीं जब ऐसा एक कंपनी की सम्पत्ति दूसरी कंपनी द्वारा ऐसी सम्पत्ति खरीदकर उस दूसरी कंपनी द्वारा अर्जित कर लेने के फलस्वरूप हो अथवा प्रथम वर्णित कंपनी के परिसमापन के पश्चात् उस दूसरी कंपनी को ऐसी सम्पत्ति के वितरण के फलस्वरूप होता हो;
(1ग) "अपर आयुक्त" से धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर अपर आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया व्यक्ति अभिप्रेत है;
(1घ) "अपर निदेशक" से धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर अपर निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया व्यक्ति अभिप्रेत है;
(2) किसी भी संपत्ति के संबंध में ''वार्षिक मूल्य'' से उसका ऐसा वार्षिक मूल्य अभिप्रेत है जो धारा 23 के अधीन तय किया गया है;
(3) [***]
(4) ''अपील अधिकरण'' से धारा 252 के अधीन गठित अपील अधिकरण अभिप्रेत है;
(5) ''अनुमोदित उपदान निधि'' से ऐसी उपदान निधि अभिप्रेत है जो चौथी अनुसूची के भाग ग में दिए गए नियमों के अनुसार प्रधान मुख्य आयुक्त या मुख्य आयुक्त या प्रधान आयुक्त या आयुक्त द्वारा अनुमोदित की गर्इ है और वह अनुमोदित बनी हुर्इ है;
(6) ''अनुमोदित अधिवार्षिकी निधि'' से ऐसी अधिवार्षिकी निधि या अधिवार्षिकी निधि का ऐसा कोर्इ भाग अभिप्रेत है जो चौथी अनुसूची के भाग ख में दिए गए नियमों के अनुसार प्रधान मुख्य आयुक्त या मुख्य आयुक्त या प्रधान आयुक्त या आयुक्त द्वारा अनुमोदित की गर्इ है और वह अनुमोदित बनी हुर्इ है;
(7) ''निर्धारिती'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके द्वारा कोर्इ कर या कोर्इ अन्य धनराशि इस अधिनियम के अधीन संदेय है, और इसके अंतर्गत–
(क) ऐसा हर व्यक्ति भी है जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन कोर्इ कार्यवाही, उसकी आय या उसके अनुषंगी फायदों की या किसी अन्य व्यक्ति की ऐसी आय की बाबत, जिसके बारे में वह व्यक्ति निर्धारणीय है, या ऐसी हानि की बाबत, जो उसके द्वारा या ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा उठार्इ गर्इ है या रिफंड की ऐसी रकम की बाबत जो उसको या ऐसे अन्य व्यक्ति को देय है, निर्धारण के लिए की गर्इ है;
(ख)ऐसा हर व्यक्ति भी हैजो इस अधिनियम के किसी उपबंध के अधीन निर्धारिती समझा जाता है;
(ग) ऐसा हर व्यक्ति भी है जो इस अधिनियम के किसी उपबंध के अधीन व्यतिक्रम करने वाला निर्धारिती समझा जाता है;
(7क)''निर्धारण अधिकारी'' से अभिप्रेत है ऐसा सहायक आयुक्त या उपायुक्त या सहायक निदेशक या उपनिदेशक या आय-कर अधिकारी, जिसमें धारा 120की उपधारा (1)याउपधारा (2) अथवा इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध के अधीन जारी किए गए निदेशों या आदेशों के आधार पर सुसंगत अधिकारिता निहित है और ऐसा अपर आयुक्त या अपर निदेशक या संयुक्त आयुक्त या संयुक्त निदेशक, जिसे उक्त धारा की उपधारा (4) के खंड (ख) के अधीन इस अधिनियम के अधीन निर्धारण अधिकारी को प्रदत्त सब या किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करने और सौंपे गए सब या किन्हीं कृत्यों का पालन करने के लिए निदेश दिया जाए;
(8) ''निर्धारण'' के अंतर्गत पुनर्निर्धारण भी है;
(9) ''निर्धारण वर्ष'' से बारह मास की वह अवधि अभिप्रेत है जो हर वर्ष 1 अप्रैल को प्रारंभ होती है;
(9क) ''सहायक आयुक्त'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन सहायक आय-कर आयुक्त या आय-कर उपायुक्त नियुक्त किया जाए;
(9ख) ''सहायक निदेशक'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन सहायक आय-कर निदेशक नियुक्त किया जाए;
(10) ''आय-कर की औसत दर'' से ऐसी दर अभिप्रेत है जो कुल आय पर परिकलित आय-कर राशि को ऐसी कुल आय से विभक्त करके निकाली गर्इ है;
(11) ''आस्ति समूह'' से आस्तियों का ऐसा समूह अभिप्रेत है जो निम्नलिखित आस्ति वर्ग के अन्तर्गत है–
(क)मूर्त आस्तियां, जैसे भवन, मशीनरी, संयंत्र या फर्नीचर;
(ख) अमूर्त आस्तियां जैसे व्यवहार-ज्ञान, पेटेन्ट, कापीराइट, व्यापार चिÉ, लाइसेंस, फ्रेन्चाइज़ या इसी प्रकार के कोर्इ अन्य कारबार या वाणिज्यिक अधिकार,
जिनकी बाबत अवक्षयण का एक ही प्रतिशत विहित है;
(12) ''बोर्ड'' से केन्द्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 (1963 का 54) के अधीन गठित केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड अभिप्रेत है;
(12क)''बही या लेखा बही'' के अंतर्गत, खाता, दैनिक बही, रोकड़ बही, लेखा बही और अन्य बहियां भी हैं चाहे वे लिखित रूप में या किसी फ्लापी, डिस्क, टेप में संग्रह डाटा के प्रिंट आऊट के रूप में या इलैक्ट्रो-मैग्नेटिक डाटा स्टोरेज डिवाइस के किसी अन्य रूप में रखी जाएं;
(13) "कारबार" के अन्तर्गत कोर्इ व्यापार, वाणिज्य या विनिर्माण अथवा कोर्इ ऐसा प्रोद्यम या समुत्थान भी है जो व्यापार, वाणिज्य या विनिर्माण की प्रकृति का है;
(13क)"कारबार न्यास" से निम्नलिखित के रूप में रजिस्ट्रीकृत न्यास अभिप्रेत है,–
(i) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (1992 का 15) के अधीन बनाए गए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (अवसंरचना विनिधान न्यास) विनियम, 2014 के अधीन कोर्इ अवसंरचना विनिधान न्यास; या
(ii) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (1992 का 15) के अधीन बनाए गए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (भू-संपदा विनिधान न्यास) विनियम, 2014 के अधीन कोर्इ भू-संपदा विनिधान न्यास; और
जिसकी इकाइयों का पूर्वोक्त विनियमों के अनुसार मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होना अपेक्षित है;
(14) '"पूंजी आस्ति" से,–
(क) किसी प्रकार की ऐसी संपत्ति अभिप्रेत है, जो किसी निर्धारिती द्वारा धारित है चाहे वह उसके कारबार या वृत्ति से संबंधित हो या न हो;
(ख) ऐसी प्रतिभूतियां अभिप्रेत हैं, जो ऐसे किसी विदेशी संस्थागत विनिधानकर्ता द्वारा धारित हों जिसने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (1992 का 15) के अधीन बनाए गए विनियमों के अनुसार ऐसी प्रतिभूतियों में विनिधान किया है,
किंतु इसके अंतर्गत निम्नलिखित नहीं हैं:–
(i) उसके कारबार या वृत्ति के प्रयोजनों के लिए धारित कोर्इ व्यापार स्टॉक [उपखंड (ख) में निर्दिष्ट प्रतिभूतियों से भिन्न], उपभोग्य सामान या कच्ची सामग्री;
(ii) वैयक्तिक चीजबस्त, अर्थात् ऐसी जंगम संपत्ति (जिसके अंतर्गत पहनने के कपड़े और फर्नीचर हैं), जो निर्धारिती द्वारा या उस पर आश्रित उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा वैयक्तिक उपयोग के लिए धारित की गर्इ है, किंतु इसके अंतर्गत निम्नलिखित नहीं हैं–
(क) आभूषण;
(ख) पुरातत्व की संग्रह की हुर्इ वस्तुएं;
(ग) ड्राइंग;
(घ) पेंटिंग्स;
(ड़) मूर्तियां; या
(च) कोर्इ अन्य कलाकृति।
स्पष्टीकरण 1–इस उपखंड के प्रयोजनों के लिए "आभूषण" के अंतर्गत निम्नलिखित हैं–
(क) सोना, चांदी, प्लेटिनम या किसी अन्य बहुमूल्य धातु या ऐसी एक या अधिक बहुमूल्य धातुओं वाली मिश्रधातु से बने आभूषण, चाहे उनमें रत्न या उपरत्न हों या नहीं और चाहे किसी पहनने के वस्त्रों में उनका काम किया गया हो या नहीं अथवा वे उनमें सिले गए हों या नहीं;
(ख) रत्न या उपरत्न, चाहे किसी फर्नीचर, बर्तन या अन्य वस्तु में जड़े हों या नहीं अथवा किसी पहनने के वस्त्रों में उनका काम किया गया हो या नहीं अथवा वे उनमें सिले गए हों या नहीं;
स्पष्टीकरण 2–इस खंड के प्रयोजनों के लिए–
(क) "विदेशी संस्थागत विनिधानकर्ता" पद का वही अर्थ होगा, जो धारा 115कघ के स्पष्टीकरण के खंड (क) में उसका है;
(ख) "प्रतिभूतियां" पद का वही अर्थ होगा, जो प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2 के खंड (ज) में उसका है;
(iii) भारत में कृषि भूमि, जो –
(क) ऐसे किसी क्षेत्र में स्थित नहीं हैं, जो किसी नगरपालिका56 (चाहे वह नगरपालिका, नगर निगम, अधिसूचित क्षेत्र समिति, शहरी क्षेत्र समिति, शहरी समिति या किसी अन्य नाम से ज्ञात हो) या छावनी बोर्ड की अधिकारिता में हो और जिसकी जनसंख्या, दस हजार से कम न हों; अथवा
(ख) एरियल रूप से मापित दूरी के भीतर किसी क्षेत्र में,–
(I) जो मद (क) में निर्दिष्ट किसी नगरपालिका या छावनी बोर्ड की स्थानीय सीमाओं से दो किलोमीटर से अधिक न हो और जिसकी जनसंख्या दस हजार से अधिक किन्तु एक लाख से अधिक नहीं है; या
(II) जो मद (क) में निर्दिष्ट किसी नगरपालिका या छावनी बोर्ड की स्थानीय सीमाओं से छह किलोमीटर से अधिक न हो और जिसकी जनसंख्या एक लाख से अधिक किन्तु दस लाख से अधिक नहीं है; या
(III) जो मद (क) में निर्दिष्ट किसी नगरपालिका या छावनी बोर्ड की स्थानीय सीमाओं से आठ किलोमीटर से अधिक न हो और जिसकी जनसंख्या दस लाख से अधिक है।
स्पष्टीकरण– इस उपखंड के प्रयोजनों के लिए, "जनसंख्या" से उस अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के अनुसार जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े पूर्ववर्ष के प्रथम दिन के पूर्व प्रकाशित हो चुके हैं ;
(iv) केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किए गए 6½ प्रतिशत वाले स्वर्ण बांड, 1977 या 7 प्रतिशत वाले स्वर्ण बांड, 1980 या राष्ट्रीय रक्षा स्वर्ण बांड, 1980;
(v) केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किए गए विशेष वाहक बांड, 1991;
(vi) केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित स्वर्ण निक्षेप स्कीम, 1999 के अधीन जारी स्वर्ण निक्षेप बांड या स्वर्ण मुद्रीकरण स्कीम, 2015 के अधीन जारी निक्षेप प्रमाणपत्र।
स्पष्टीकरण–शंकाओं को दूर करने के लिए यह स्पष्ट किया जाता है कि "संपत्ति" के अंतर्गत किसी भारतीय कंपनी में या उसके संबंध में कोर्इ अधिकार, जिनमें प्रबंध या नियंत्रण के अधिकार अथवा किसी भी प्रकार के कोर्इ अन्य अधिकार हैं, सम्मिलित हैं और सदैव से सम्मिलित समझे जाएंगे;
(15) "पूर्त प्रयोजन" के अतंर्गत गरीबों की सहायता, शिक्षा, योग, चिकित्सा सहायता, पर्यावरण संरक्षण (जिसके अंतर्गत जलाशय, वन और वन्य जीव भी हैं) और कलात्मक या ऐतिहासिक महत्व के स्मारकों या स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण और किसी ऐसे सामान्य लोकोपयोगी अन्य उद्देश्य को अग्रसर करना भी है:
परंतु सामान्य लोक उपयोगी किसी ऐसे अन्य उद्देश्य को अग्रसर करना पूर्त प्रयोजन नहीं होगा यदि उसमें किसी उपकर या फीस या किसी अन्य प्रतिफल के लिए व्यापार, वाणिज्य या कारबार की प्रकृति का कोर्इ क्रियाकलाप या किसी व्यापार, वाणिज्य या कारबार के संबंध में कोर्इ सेवा प्रदान करने का कोर्इ क्रियाकलाप करना अंतर्वलित है भले ही ऐसे क्रियाकलाप से आय के उपयोग या उपयोजन या प्रतिधारण की कोर्इ भी प्रकृति हो, जब तक कि–
(i) ऐसा क्रियाकलाप किसी अन्य सामान्य लोक उपयोगी उद्देश्य के ऐसे उद्ग्रहण को वस्तुत: क्रियान्वित करने के अनुक्रम में हाथ में लिया गया है; और
(ii) ऐसे क्रियाकलाप या क्रियाकलापों से सकल प्राप्तियां, पूर्ववर्ष के दौरान, उस न्यास या संस्था की, जो ऐसा क्रियाकलाप या ऐसे क्रियाकलाप हाथ में लेती है, उस पूर्ववर्ष की कुल प्राप्तियों के बीस प्रतिशत से अधिक नहीं है;
(15क) "मुख्य आयुक्त" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर मुख्य आयुक्त या आय-कर प्रधान मुख्य आयुक्त नियुक्त किया जाता है;
(15ख) किसी व्यष्टि के संबंध में, "संतान" के अंतर्गत उस व्यष्टि की सौतेली संतान और दत्तक संतान भी है;
(16) "आयुक्त" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर आयुक्त या आय-कर निदेशक या आय-कर प्रधान आयुक्त या आय-कर प्रधान निदेशक नियुक्त किया जाता है;
(16क) ''आयुक्त (अपील)'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसे धारा 117 की उपधारा (1)के अधीन आय-कर आयुक्त (अपील) नियुक्त किया जाए;
(17) ''कंपनी'' से अभिप्रेत है–
(i) कोर्इ भारतीय कंपनी, या
(ii) कोर्इ निगमित निकाय, जो भारत के बाहर के किसी देश की विधि के द्वारा या उसके अधीन निगमित है, या
(iii) कोर्इ संस्था, संगम या निकाय, जो भारतीय आय-कर अधिनियम, 1922 (1922 का 11) के अधीन किसी निर्धारण वर्ष के लिए कंपनी के रूप में निर्धारणीय है या था या उसका निर्धारण किया गया था अथवा जो 1 अप्रैल, 1970 को या उसके पूर्व प्रारंभ होने वाले किसी निर्धारण वर्ष के लिए इस अधिनियम के अधीन कंपनी के रूप में निर्धारणीय है या था या उसका निर्धारण किया गया था, या
(iv) कोर्इ संस्था, संगम या निकाय, चाहे निगमित हो या नहीं और चाहे भारतीय हो या गैर-भारतीय हो, जिसे बोर्ड के साधारण या विशेष आदेश द्वारा कंपनी घोषित किया गया है :
परन्तु ऐसी संस्था, संगम या निकाय को केवल उसी निर्धारण वर्ष या उन्हीं निर्धारण वर्षों के लिए (चाहे 1 अप्रैल, 1971 के पूर्व प्रारंभ हो अथवा उक्त तारीख को या उसके पश्चात् प्रारंभ हो) कंपनी समझा जाएगा जो घोषणा में विनिर्दिष्ट किया गया या किए जाएं;
(18) ''वह कंपनी जिसमें जनता पर्याप्त हितबद्ध है''- किसी कंपनी को ऐसी कंपनी, जिसमें जनता पर्याप्त रूप से हितबद्ध है, तब कहा जाता है जब–
(क) वह कंपनी ऐसी कंपनी है जो सरकार के या भारतीय रिजर्व बैंक के स्वामित्व में है या जिसमें कम से कम चालीस प्रतिशत शेयर सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक या उस बैंक के स्वामित्वाधीन किसी निगम द्वारा (चाहे अकेले या साथ मिलकर) धारित हों; या
(कक) वह कंपनी ऐसी कंपनी है जो कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 25 के अधीन रजिस्टर्ड है; या
(कख)वह कंपनी ऐसी कंपनी है जिसकी कोर्इ शेयर पूंजी नहीं है और यदि उसके उद्देश्य, उसकी सदस्यता की प्रकृति और गठन तथा अन्य सुसंगत बातों को ध्यान में रखते हुए, उसे बोर्ड के आदेश द्वारा ऐसी कंपनी घोषित किया जाता है जिसमें जनता पर्याप्त रूप से हितबद्ध है :
परन्तु ऐसी कंपनी केवल उसी निर्धारण वर्ष या उन्हीं निर्धारण वर्षों के लिए (चाहे 1 अप्रैल, 1971 के पूर्व प्रारंभ हो, अथवा उक्त तारीख को या उसके पश्चात् प्रारंभ हो) ऐसी कंपनी समझी जाएगी जिसमें जनता पर्याप्त रूप से हितबद्ध है, जो घोषणा में विनिर्दिष्ट किए जाएं; या
(कग) वह कंपनी पारस्परिक फायदा वित्त कंपनी है अर्थात् वह ऐसी कंपनी है जो अपने प्रमुख कारबार के रूप में अपने सदस्यों से निक्षेप स्वीकार करने का कारबार करती है और जो केंद्रीय सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 620क के अधीन निधि या पारस्परिक फायदा सोसाइटी घोषित की गर्इ है; या
(कघ)वह कंपनी ऐसी कंपनी है जिसमें ऐसे शेयर (जो लाभांश की नियत दर के हकदार शेयर न होते हुए, चाहे वे लाभों में भाग लेने के अतिरिक्त अधिकार सहित हों या उससे रहित) कम से कम पचास प्रतिशत मतदान की शक्ति रखने वाले हैं, एक या अधिक सहकारी सोसाइटियों को बिना शर्त आबंटित किए गए हों, अथवा उनके द्वारा बिना शर्त अर्जित किए गए हों तथा सुसंगत पूर्ववर्ष भर उनके द्वारा फायदाप्रद रूप से धारित रहे हों;
(ख) वह कंपनी ऐसी कंपनी है जो कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में यथा परिभाषित प्राइवेट कंपनी नहीं है, और मद (अ) में या मद (आ) में विनिर्दिष्ट शर्तें पूरी हो जाती हैं, अर्थात्:–
(अ) उस कंपनी के ऐसे शेयर (जो लाभांश की नियत दर के हकदार शेयर न होते हुए, चाहे वे लाभों में भाग लेने के अतिरिक्त अधिकार के सहित हों या उससे रहित) जो सुसंगत पूर्ववर्ष के अंतिम दिन भारत में किसी मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज में प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) तथा उसके अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार सूचीगत हों;
(आ) उस कंपनी के ऐसे शेयर (जो लाभांश की नियत दर के हकदार शेयर न होते हुए, चाहे वे लाभों में भाग लेने के अतिरिक्त अधिकार सहित हों या उससे रहित) जो कम से कम पचास प्रतिशत मतदान की शक्ति रखने वाले हैं और–
(क) सरकार को, या
(ख) ऐसे निगम को, जो किसी केंद्रीय, राज्य या प्रांतीय अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया है, या
(ग) किसी ऐसी कंपनी को जिसको यह खंड लागू होता है, या ऐसी कंपनी की किसी ऐसी समनुषंगी कंपनी को यदि ऐसी समनुषंगी कंपनी की सम्पूर्ण शेयर पूंजी पूर्ववर्ष भर मूल कंपनी या उसके नामनिर्देशितियों द्वारा धारित रही है,
बिना शर्त आबंटित किए गए हों अथवा उसके द्वारा बिना शर्त अर्जित किए गए हों तथा सुसंगत पूर्ववर्ष भर उसके द्वारा फायदाप्रद रूप से धारित रहे हों।
स्पष्टीकरण.–किसी ऐसी भारतीय कंपनी को, जिसका कारबार मुख्यत: पोत सन्निर्माण अथवा माल का विनिर्माण या प्रसंस्करण अथवा खनन अथवा विद्युत या किसी अन्य प्रकार की शक्ति का उत्पादन या वितरण है, इसके लागू होने में मद (आ)ऐसे प्रभावी होगी मानो ''पचास प्रतिशत से अन्यून'' शब्दों के स्थान पर ''चालीस प्रतिशत से अन्यून'' शब्द रखे गए हों;
(19) ''सहकारी सोसाइटी'' से ऐसी सोसाइटी अभिप्रेत है जो सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1912 (1912 का 2) के अधीन या सहकारी सोसाइटियों के रजिस्ट्रेशन के लिए किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन रजिस्टर्ड है;
(19क) ''उपायुक्त'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर उपायुक्त नियुक्त किया जाए;
(19कक) कंपनियों के संबंध में, ''अविलयन'' से अभिप्रेत है, कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 391 से धारा 394 के अधीन किसी ठहराव की स्कीम के अनुसरण में किसी अविलयित कंपनी द्वारा अपने एक या अधिक उपक्रमों का किसी पारिणामिक कंपनी को ऐसी रीति से अंतरण कि–
(i) उपक्रम की सभी संपत्ति जो अविलयन से ठीक पहले अविलयित कंपनी द्वारा अंतरित की गर्इ है, अविलयन के फलस्वरूप पारिणामिक कंपनी की संपत्ति हो जाए;
(ii) उपक्रम से संबंधित सभी दायित्व जो अविलयन से ठीक पहले अविलयित कंपनी द्वारा अंतरित किए गए हैं, अविलयन के फलस्वरूप पारिणामिक कंपनी के दायित्व हो जाएं;
(iii) उपक्रम या उपक्रमों की संपत्ति और दायित्व जो अविलयित कंपनी द्वारा अंतरित की गर्इ हो/किए गए हों, अविलयन के ठीक पहले उसकी लेखा बहियों में दिए गए मूल्य पर अंतरित की जाएं/किए जाएं;
(iv) अविलयन के फलस्वरूप पारिणामिक कंपनी अपने शेयर अविलयित कंपनी के शेयरधारकों को उस दशा के सिवाय आनुपातिक आधार पर, जहां पारिणामिक कंपनी स्वयं अविलयित कंपनी की एक शेयरधारक है, पुरोधृत करे;
(v) ऐसे शेयरधारक जो अविलयित कंपनी में ¾ से अन्यून मूल्य के शेयरों को (जो अविलयन से ठीक पहले पारिणामिक कंपनी या उसकी समनुषंगी कंपनी या उसके लिए नामनिर्देशिती द्वारा उनमें पहले ही धारित शेयरों से भिन्न हैं) धारित करते हैं, अविलयन के फलस्वरूप पारिणामिक कंपनी या कंपनियों के शेयरधारक बन जाएं;
किंतु यह तब नहीं जब ऐसी अविलयित कंपनी या उसके किसी उपक्रम की संपत्ति या आस्तियां पारिणामिक कंपनी द्वारा अर्जित कर लेने के परिणामस्वरूप होती हों;
(vi) उपक्रम का अंतरण अस्थायी आधार है;
(vii) अविलयन, केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 72क की उपधारा (5) के अधीन इस निमित्त अधिसूचित की गर्इ शर्तों, यदि कोर्इ हों, के अनुसार किया गया है।
स्पष्टीकरण 1.–इस खण्ड के प्रयोजनों के लिए, ''उपक्रम'' के अंतर्गत, किसी उपक्रम का कोर्इ भाग या किसी उपक्रम का कोर्इ एकक या प्रभाग या किसी समग्र कारबार का क्रियाकलाप होगा, किंतु इसके अंतर्गत उसकी व्यष्टिक आस्तियां या दायित्व या उसका कोर्इ समुच्चय नहीं होगा जिनसे कारबार के क्रियाकलाप का गठन नहीं होता है।
स्पष्टीकरण 2.–इस खण्ड के प्रयोजनों के लिए उपखंड (ii)में निर्दिष्ट दायित्वों के अंतर्गत निम्नलिखित होंगे :–
(क) उपक्रम के क्रियाकलापों या संक्रियाओं से उद्भूत दायित्व;
(ख) उपक्रम के क्रियाकलापों या संक्रियाओं के लिए एकमात्र रूप से उगाहे गए, लिए गए और उपयोग में लाए गए विनिर्दिष्ट ऋण या उधार (जिनके अंतर्गत डिबेंचर भी हैं); और
(ग) खण्ड (क) या खण्ड (ख) में निर्दिष्ट से भिन्न दशाओं में, अविलयित कंपनी के ऐसे साधारण या बहुउद्देशीय उधार, यदि कोर्इ हों, की उतनी रकम, जो उसी अनुपात में है, जिसमें किसी अविलयन में अंतरित आस्तियों के मूल्य का अविलयन के ठीक पहले ऐसी अविलयित कंपनी की आस्तियों से संबंध है।
स्पष्टीकरण 3.–उपखंड (iii) में निर्दिष्ट संपत्ति के मूल्य के अवधारण के लिए, उनके पुनर्मूल्यांकन के परिणामस्वरूप आस्तियों के मूल्य में किए गए किसी परिवर्तन की उपेक्षा की जाएगी।
स्पष्टीकरण 4.–इस खंड के प्रयोजनों के लिए, किसी केन्द्रीय, राज्य या प्रांतीय अधिनियम के अधीन गठित या स्थापित किसी प्राधिकरण या निकाय अथवा किसी स्थानीय प्राधिकारी या पब्लिक सेक्टर कंपनी का, यथास्थिति, पृथक् प्राधिकरणों, निकायों या स्थानीय प्राधिकारियों या कंपनियों में विभाजन या पुनर्संरचना को अविलयन समझा जाएगा यदि ऐसा विभाजन या पुनर्संरचना केंद्रीय सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचित शर्तों को पूरा करती है;
स्पष्टीकरण 5.–इस खंड के प्रयोजनार्थ किसी कम्पनी, जो केन्द्र सरकार द्वारा अपने शेयरों के हस्तान्तरण करने की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी नहीं रह गर्इ हो, के पुर्ननिर्माण या विभाजन को डिमर्जर समझा जायेगा। यदि ऐसे पुर्ननिर्माण या विभाजन शेयर हस्तान्तरण के किसी शर्त को पूरा करने के लिए किया गया हो और केन्द्र सरकार द्वारा आधिकारिक राजपत्र में सूचित किये गये ऐसे किसी अन्य शर्त को भी पूरा करता हो;
(19ककक) ''अविलयित कंपनी'' से ऐसी कोर्इ कंपनी अभिप्रेत है जिसका उपक्रम किसी अविलयन के अनुसरण में किसी पारिणामिक कंपनी को अंतरित कर दिया जाता है;
(19ख) ''उपायुक्त (अपील)'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर उपायुक्त (अपील) या अपर आय-कर आयुक्त (अपील) नियुक्त किया जाए;
(19ग) ''उप निदेशक'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर उप निदेशक नियुक्त किया जाए;
(20) कंपनी के संबंध में ''निदेशक'', ''प्रबंधक'' और ''प्रबंध अभिकर्ता'' के वे ही अर्थ हैं जो कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में क्रमश: उनके हैं;
(21) "महानिदेशक या निदेशक" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन, यथास्थिति, आय-कर महानिदेशक या आय-कर प्रधान महानिदेशक या आय-कर निदेशक या आय-कर प्रधान निदेशक के रूप में नियुक्त किया जाता है और इसके अंतर्गत ऐसा व्यक्ति है जो उस उपधारा के अधीन आय-कर अपर निदेशक या आय-कर संयुक्त निदेशक या आय-कर सहायक निदेशक या आय-कर उप निदेशक के रूप में नियुक्त किया जाता है;
(22) ''लाभांश'' के अंतर्गत निम्नलिखित भी है–
(क) किसी कंपनी द्वारा संचित लाभों2 का, चाहे वे पूंजीकृत हों या नहीं, कोर्इ वितरण, यदि कंपनी द्वारा किए गए वितरण का फल उसके शेयरधारकों के लिए कंपनी की सभी आस्तियों या उनके किसी भाग का उन्मोचन होता है;
(ख) किसी कंपनी द्वारा अपने शेयरधारकों को डिबेंचर, डिबेंचर-स्टाक अथवा किसी भी रूप के निक्षेप-प्रमाणपत्रों का, चाहे ब्याज सहित या रहित, कोर्इ वितरण और अपने अधिमान शेयरधारकों को बोनस के रूप में शेयरों का वितरण उस मात्रा तक जिस तक कंपनी के पास संचित लाभ हैं, चाहे वे पूंजीकृत हों या नहीं;
(ग) किसी कंपनी ने अपने समापन पर अपने शेयरधारकों को कोर्इ वितरण उस मात्रा तक जिस तक वह वितरण कंपनी के अपने समापन के ठीक पहले उसके संचित लाभों के परिणामस्वरूप होता हो, चाहे वे पूंजीकृत हों या नहीं;
(घ) किसी कंपनी द्वारा अपनी पूंजी कम करने पर उसके द्वारा अपने शेयरधारकों को कोर्इ वितरण, उस मात्रा तक जिस तक कंपनी के पास संचित लाभ हैं जो ऐसे पूर्ववर्ष के समाप्त होने के पश्चात् जो 1 अप्रैल, 1933 से ठीक पूर्व समाप्त होता है, उद्भूत हुए हैं चाहे ऐसे संचित लाभ पूंजीकृत हों या नहीं;
(ड़) किसी कंपनी द्वारा, जो ऐसी कंपनी नहीं है जिसमें जनता पर्याप्त रूप से हितबद्ध है, किसी ऐसे शेयरधारक को जो ऐसा व्यक्ति है जो ऐसे शेयरों का (जो लाभांश में नियत दर के हकदार शेयर न होते हुए, चाहे वे लाभों में भाग लेने के अधिकार सहित हों या रहित) हिताधिकारी स्वामी है जो कम से कम दस प्रतिशत मतदान की शक्ति धारण करने वाला है अथवा किसी समुत्थान को, जिसमें ऐसा शेयरधारक सदस्य या भागीदार है और जिसमें वह पर्याप्त रूप से हितबद्ध है (जिसे इस खंड में इसके पश्चात् उक्त समुत्थान कहा गया है) अग्रिम या उधार के रूप में किसी राशि का (चाहे वह कंपनी की आस्तियों के किसी भाग के रूप में हो या अन्यथा) उस सीमा तक 31 मर्इ, 1987 के बाद किया गया कोर्इ भुगतान अथवा किसी ऐसी कंपनी द्वारा किसी ऐसे शेयरधारक की ओर से या उसके व्यक्तिगत फायदे के लिए दोनों में से किसी भी दशा में उस मात्रा तक कोर्इ भुगतान जिस तक कंपनी के पास संचित लाभ हैं;
किन्तु "लाभांश" के अन्तर्गत निम्नलिखित नहीं हैं–
(i) पूरे नकद प्रतिफल के लिए जारी किए गए किसी शेयर की बाबत उपखंड (ग) या उपखंड (घ) के अनुसार किया गया वितरण, जहां उस शेयर का धारक समापन की दशा में अधिशेष आस्तियों में भाग लेने का हकदार नहीं है;
(iक)उपखंड (ग) या उपखंड (घ) के अनुसार किया गया वितरण जहां तक ऐसा वितरण कंपनी के ऐसे पूंजीकृत लाभों से हुआ माना जा सकता है जो 31 मार्च, 1964 के पश्चात् और 1 अप्रैल, 1965 के पूर्व अपने साधारण शेयरधारकों को आबंटित बोनस शेयरों के रूप में है;
(ii) कंपनी द्वारा अपने कारबार के साधारण अनुक्रम में किसी शेयरधारक या उक्त समुत्थान को दिया गया कोर्इ अग्रिम या उधार, जहां धन उधार देना उस कंपनी के कारबार का पर्याप्त भाग है;
(iii) कंपनी द्वारा दिया गया कोर्इ ऐसा लाभांश जो कंपनी द्वारा पहले ही दी जा चुकी पूर्ण राशि या उसके भाग से कंपनी द्वारा पहले ही मुजरा किया गया है और जो उपखंड (ड़)के अर्थ में लाभांश उस मात्रा तक माना गया है जिस तक वह इस प्रकार मुजरा किया गया है;
(iv) कंपनी द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 77क के उपबंधों के अनुसार शेयरधारक से अपने शेयर खरीदने पर किया गया कोर्इ भुगतान;
(v) पारिणामिक कंपनी द्वारा अविलयित कंपनी के शेयरधारकों को अविलयन के अनुसरण में शेयरों का कोर्इ वितरण (चाहे अविलयित कंपनी में पूंजी घटी हो या नहीं)।
स्पष्टीकरण 1.–इस खंड में जहां कहीं ''संचित लाभ'' पद आया है वहां उसके अंतर्गत वे पूंजी अभिलाभ नहीं होंगे जो 1 अप्रैल, 1946 के पूर्व या 31 मार्च, 1948 के पश्चात् और 1 अप्रैल, 1956 के पूर्व उद्भूत हुए हों।
स्पष्टीकरण 2.–उपखंड (क), (ख),(घ) और (ड़) में आए "संचित लाभ" पद के अंतर्गत उन उपखंडों में उल्लिखित वितरण या भुगतान की तारीख तक के कंपनी के सभी लाभ होंगे और उपखंड (ग)में आए "संचित लाभ" पद के अंतर्गत समापन की तारीख तक के कंपनी के सभी लाभ होंगे किंतु जहां समापन सरकार द्वारा या सरकार के स्वामित्व के या उसके द्वारा नियंत्रित किसी निगम द्वारा उस समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन उसके उपक्रम के अनिवार्य अर्जन के परिणामस्वरूप हुआ है, वहां इसके अंतर्गत कंपनी के ऐसे लाभ नहीं होंगे जो ऐसे पूर्ववर्ष के, जिसमें ऐसा अर्जन हुआ था, ठीक पहले के तीन लगातार पूर्ववर्षों के पहले हुए हों।
1[स्पष्टीकरण 2क.–किसी समामेलित कंपनी की दशा में, यथास्थिति, संचित लाभों, चाहे पूंजीकृत हों या नहीं, या हानि में समामेलन की तारीख को समामेलित कंपनी के संचित लाभों को, चाहे पूंजीकृत हों या नहीं, बढ़ा दिया जाएगा।]
स्पष्टीकरण 3.–इस खंड के प्रयोजनों के लिए–
(क) ''समुत्थान'' से अभिप्रेत है कोर्इ हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब या फर्म या व्यक्ति संगम या व्यष्टि निकाय या कंपनी;
(ख) किसी व्यक्ति को, किसी समुत्थान में, जो किसी कम्पनी से भिन्न है, पर्याप्त रूप से हितबद्ध तब समझा जाएगा जब वह पूर्ववर्ष के दौरान किसी समय ऐसे समुत्थान की आय के कम से कम बीस प्रतिशत का फायदा पाने का हकदार है;
(22क) "देशी कंपनी" से कोर्इ ऐसी भारतीय कंपनी या कोर्इ अन्य ऐसी कंपनी अभिप्रेत है जिसने, इस अधिनियम के अधीन कर के दायित्वाधीन अपनी आय के संबंध में ऐसे विहित इंतजाम कर लिए हैं कि ऐसी आय में से देने योग्य लाभांशों की (जिनके अंतर्गत अधिमानी शेयरों पर लाभांश हैं) घोषणा और उनका भुगतान भारत में किया जाए;
(22कक) "दस्तावेज" के अंतर्गत इलैक्ट्रानिक रिकार्ड भी है जैसा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की धारा 2 की उपधारा (1)के खंड (न)में परिभाषित है;
(22ककक) "निर्वाचन न्यास" से केन्द्रीय सरकार द्वारा इस बारे में बनार्इ गर्इ स्कीम के अनुसार बोर्ड द्वारा यथाअनुमोदित न्यास अभिप्रेत है;
(22ख) पूंजी आस्ति के संबंध में ''उचित बाजार मूल्य'' से अभिप्रेत है–
(i) ऐसी कीमत जो खुले बाजार में सुसंगत तारीख को पूंजी आस्ति के बेचने पर साधारणतया प्राप्त हो; और
(ii) जहां उपखंड (i) में बतार्इ गर्इ कीमत सुनिश्चित न की जा सके वहां ऐसी कीमत, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार तय की जाए;
(23) (i) "फर्म" का वही अर्थ होगा जो भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (1932 का 9) में उसका है और उसके अंतर्गत सीमित दायित्व भागीदारी अधिनियम, 2008 (2009 का 6) में यथा परिभाषित सीमित दायित्व भागीदारी भी आएगी;
(ii) "भागीदार" का वही अर्थ होगा जो भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (1932 का 9) में उसका है और उसके अंतर्गत,–
(क) ऐसा कोर्इ व्यक्ति आएगा जिसे अवयस्क होते हुए भागीदारी के फायदों के लिए शामिल किया गया है; और
(ख) सीमित दायित्व भागीदारी अधिनियम, 2008 (2009 का 6) में यथा परिभाषित सीमित दायित्व भागीदारी का कोर्इ भागीदार भी आएगा;
(iii) "भागीदारी" का वही अर्थ होगा जो भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (1932 का 9) में उसका है और उसके अंतर्गत सीमित दायित्व भागीदारी अधिनियम, 2008 (2009 का 6) में यथा परिभाषित सीमित दायित्व भागीदारी भी आएगी;
(23क) ''विदेशी कंपनी'' से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है जो देशी कंपनी नहीं है;
(23ख)"अनुषंगी फायदों" से धारा 115बख में निर्दिष्ट कोर्इ अनुषंगी फायदे अभिप्रेत हैं;
(23ग) "सुनवार्इ" में इलैक्ट्रानिक पद्धति के माध्यम से आंकड़ों और दस्तावेजो की संसूचना सम्मिलित है;
(24) ''आय'' के अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं–
(i) लाभ और अभिलाभ;
(ii) लाभांश;
(iiक) पूर्त या धार्मिक प्रयोजनों के लिए पूर्णत: या भागत: सृजित किसी न्यास द्वारा या ऐसे प्रयोजनों के लिए पूर्णत: या भागत: स्थापित किसी संस्था द्वारा या धारा 10 के खण्ड (21) या खण्ड (23) में निर्दिष्ट संगम या संस्था द्वारा या खण्ड (23ग) के उपखण्ड (iv) या उपखण्ड (v) में निर्दिष्ट किसी निधि या न्यास या संस्था द्वारा या उपखंड (iiiकघ) या उपखंड (vi) में निर्दिष्ट किसी विश्वविद्यालय या अन्य शैक्षणिक संस्था द्वारा या उपखंड (iiiकड़) उपखंड (viक) में निर्दिष्ट किसी अस्पताल या अन्य संस्था या निर्वाचन न्यास द्वारा।
स्पष्टीकरण.–इस उपखण्ड के प्रयोजनों के लिए "न्यास" के अंतर्गत कोर्इ अन्य विधिक बाध्यता भी है;
(iii) धारा 17 के खण्ड (2) और (3) के अधीन कराधेय किसी परिलब्धि या वेतन के बदले में लाभ का मूल्य;
(iiiक) उपखण्ड (iii)में सम्मिलित परिलब्धि से भिन्न कोर्इ ऐसा विशेष भत्ता या फायदा, जो किसी लाभ के पद या नियोजन के कर्त्तव्यों के पालन के लिए व्यय की पूर्णत:, आवश्यक रूप से और अनन्य रूप से पूर्ति के लिए निर्धारिती को विनिर्दिष्ट तौर पर दिया गया हो;
(iiiख) कोर्इ भत्ता जो निर्धारिती को उस स्थान पर, जहां लाभ के उसके पद या नियोजन के कर्त्तव्यों का उस द्वारा साधारणतया पालन किया जाता है या उस स्थान पर, जहां वह साधारणतया रहता है, उसके व्यक्तिगत व्यय को पूरा करने के लिए या जीवन निर्वाह के बढ़े हुए खर्च की भरपार्इ करने के रूप में दिया गया हो;
(iv) किसी ऐसे फायदे या परिलब्धि का मूल्य, चाहे उसे धन में बदला जा सके या नहीं, या तो किसी निदेशक ने या ऐसे व्यक्ति ने जो कम्पनी में पर्याप्त रूप से हितबद्ध है या निदेशक के या उस व्यक्ति के किसी नातेदार ने कम्पनी से लिया हो और कोर्इ ऐसी राशि जो किसी ऐसी कम्पनी द्वारा किसी बाध्यता की बाबत दी गर्इ हो, यदि ऐसा न किया जाता है, तो उक्त निदेशक या अन्य व्यक्ति द्वारा दी जानी होती;
(ivक) किसी ऐसे फायदे या परिलब्धि का मूल्य, चाहे उसे धन में बदला जा सके या नहीं, जो धारा 160 की उपधारा (1) के खण्ड (iii) या खण्ड (iv) में उल्लिखित किसी प्रतिनिधि निर्धारिती ने या किसी ऐसे व्यक्ति ने, जिसकी ओर से या जिसके फायदे के लिए कोर्इ आय प्रतिनिधि निर्धारिती द्वारा प्राप्त किए जाने योग्य है (ऐसे व्यक्ति को इस उपखण्ड में इसके आगे 'हिताधिकारी' कहा गया है) लिया हो और कोर्इ ऐसी राशि जो प्रतिनिधि निर्धारिती द्वारा किसी ऐसी बाध्यता की बाबत दी गर्इ हो, यदि ऐसा न किया जाता तो हिताधिकारी द्वारा दी जानी होती ;
(v) कोर्इ ऐसी राशि, जो धारा 28 के खण्ड (ii) और (iii) या धारा 41 या धारा 59 के अधीन आय-कर से प्रभार्य है;
(vक) कोर्इ ऐसी राशि, जो धारा 28 के खण्ड (iiiक) के अधीन आय-कर से प्रभार्य है;
(vख) कोर्इ ऐसी राशि, जो धारा 28 के खण्ड (iiiख) के अधीन आय-कर से प्रभार्य है;
(vग) कोर्इ ऐसी राशि, जो धारा 28 के खण्ड (iiiग) के अधीन आय-कर से प्रभार्य है;
(vघ) धारा 28 के खण्ड (iv)के अधीन कराधेय किसी फायदे या परिलब्धि का मूल्य;
(vड़)कोर्इ ऐसी राशि, जो धारा 28 के खण्ड (v) के अधीन आय-कर से प्रभार्य है;
(vi) धारा 45 के अधीन प्रभार्य कोर्इ पूंजी अभिलाभ ;
(vii) बीमा के किसी कारबार के, जो किसी पारस्परिक बीमा कम्पनी द्वारा या किसी सहकारी सोसाइटी द्वारा चलाया जाता है, लाभ और अभिलाभ जो धारा 44 के अनुसार संगणित किए गए हैं या ऐसा कोर्इ अधिशेष जो पहली अनुसूची के उपबंधों के आधार पर ऐसे लाभ और अभिलाभ माने गए हैं;
(viiक) बैंकिंग के किसी कारबार के (जिसमें क्रेडिट सुविधाएं उपलब्ध कराना भी है), जो किसी सहकारी सोसाइटी द्वारा उसके सदस्यों के साथ चलाया जाता है, लाभ और अभिलाभ;
(viii) [वित्त अधिनियम, 1988 द्वारा 1.4.1988 से लोप किया गया। मूल उपखण्ड (viii) वित्त अधिनियम, 1964 द्वारा 1.4.1964 से अंत:स्थापित किया गया था;]
(ix) लाटरी से, वर्ग पहेली से, दौड़ से जिसके अंतर्गत घुड़दौड़ भी है, ताश के खेल से और अन्य सभी प्रकार के खेलों से या अन्य किसी भी प्रकार से या प्रकृति के जुए से या दांव से हुर्इ जीत।
स्पष्टीकरण.–इस उपखंड के प्रयोजनों के लिए–
(i) "लाटरी" के अंतर्गत किसी स्कीम या ठहराव के अधीन, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, लाट निकाल कर या संयोग से या किसी भी अन्य रीति से, किसी व्यक्ति को दिए गये इनामों से जीत है;
(ii) ''ताश के खेल और किसी प्रकार के अन्य खेल'' के अंतर्गत टेलीविजन या इलेक्ट्रानिक माध्यम पर ऐसा कोर्इ खेल प्रदर्शन, कोर्इ मनोरंजन कार्यक्रम, जिसमें लोग इनाम जीतने के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं, या कोर्इ अन्य समरूप खेल है;
(x) किसी भविष्य निधि या अर्धवार्र्षिकी निधि या कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) के उपबंधों के अधीन बनार्इ गर्इ किसी निधि या ऐसे कर्मचारियों के कल्याण के लिए किसी अन्य निधि में अभिदाय के रूप में निर्धारिती द्वारा अपने कर्मचारियों से प्राप्त कोर्इ राशि;
(xi) कीमैन बीमा पालिसी के अधीन प्राप्त कोर्इ धनराशि जिसमें ऐसी पालिसी पर बोनस के रूप में दी गर्इ धनराशि भी है।
स्पष्टीकरण.–इस खंड* के प्रयोजनार्थ "कीमैन बीमा पालिसी" का वही अर्थ होगा जो इसका धारा 10 के खंड (10घ) के स्पष्टीकरण में दिया गया है;
(xii) धारा 28 के खंड (vक) में उल्लिखित कोर्इ राशि;
वित्त अधिनियम, 2018 द्वारा 1.4.2019 से धारा 2 के खंड (24) के उपखंड (xii) के पश्चात् उपखंड (xiiक) अंत:स्थापित किया जाएगा:
(xiiक) धारा 28 के खंड (viक) में निर्दिष्ट सूची का उचित बाजार मूल्य;
(xiii) धारा 56 की उपधारा (2) के खंड (v) में उल्लिखित कोर्इ राशि;
(xiv) धारा 56 की उपधारा (2) के खंड (vi) में उल्लिखित कोर्इ राशि;
(xv) धारा 56 की उपधारा (2) के खंड (vii) या खंड (viiक) धारा में निर्दिष्ट कोर्इ धनराशि या संपत्ति का मूल्य;
(xvi) शेयरों के निर्गमन के लिए प्राप्त ऐसा कोर्इ प्रतिफल, जो धारा 56 की उपधारा (2) के खंड (viiख) में निर्दिष्ट शेयरों के उचित बाजार मूल्य से अधिक है;
(xvii) धारा 56 की उपधारा (2) के खंड (ix) में निर्दिष्ट कोर्इ धनराशि;
वित्त अधिनियम, 2018 द्वारा 1.4.2019 से धारा 2 के खंड (24) के उपखंड (xviiक) के पश्चात् उपखंड (xviiख) अंत:स्थापित किया जाएगा:
(xviiख) धारा 56 की उपधारा (2) के खंड (xi) में निर्दिष्ट कोर्इ प्रतिकर या अन्य संदाय;
(xviii) केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी प्राधिकरण या निकाय या अभिकरण द्वारा सहायकी या अनुदान या नकद प्रोत्साहन या शुल्क वापसी या अधित्यजन या रियायत या प्रतिपूर्ति (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) के रूप में निर्धारिती को, ऐसी सहायकी या अनुदान,–
(क) या प्रतिपूर्ति से भिन्न जिसे धारा 43 के खंड (1) के स्पष्टीकरण 10 के उपबंधों के अनुसार आस्ति की वास्तविक लागत के अवधारण के लिए हिसाब में लिया जाना है; या
(ख) से भिन्न, जो, यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा स्थापित किसी न्यास या संस्था के निकाय के प्रयोजन के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा दी जानी है,
नकद या वस्तु रूप में सहायता;
(25) "आय-कर अधिकारी" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 के अधीन आय-कर अधिकारी नियुक्त किया जाता है ;
(25क) "भारत" से संविधान के अनुच्छेद 1 में यथाउल्लिखित भारत का राज्यक्षेत्र, राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मग्न-तट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्र अधिनियम, 1976 (1976 का 80) में यथाउल्लिखित इसके राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, ऐसे सागर-खंड के नीचे के समुद्र तल और अवमृदा, महाद्वीपीय मग्नतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र या कोर्इ अन्य सामुद्रिक क्षेत्र तथा उसके राज्यक्षेत्र और राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड के ऊपर के आकाश का क्षेत्र अभिप्रेत है;
(26) "भारतीय कम्पनी" से कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन बनार्इ गर्इ और रजिस्ट्रीकृत कम्पनी अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित भी हैं—
(i) ऐसी कम्पनी, जो कम्पनियों से संबंधित किसी ऐसी विधि के अधीन बनार्इ गर्इ और रजिस्ट्रीकृत है जो (जम्मू-कश्मीर राज्य और इस खण्ड के उपखण्ड (iii) में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्रों को छोड़कर) भारत के किसी भाग में पहले प्रवृत्त रही हो ;
(iक) किसी केन्द्रीय, राज्य या प्रांतीय अधिनियम द्वारा या के अधीन स्थापित निगम;
(iख)कोर्इ संस्था, संगम या निकाय जो बोर्ड द्वारा खण्ड (17) के अधीन कम्पनी घोषित किया जाए;
(ii) जम्मू-कश्मीर राज्य की दशा में, उस राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन बनार्इ गर्इ और रजिस्ट्रीकृत कोर्इ कम्पनी ;
(iii) दादरा और नागर हवेली, गोवा*, दमण और दीव तथा पांडिचेरी के संघ राज्यक्षेत्रों की दशा में, उस संघ राज्यक्षेत्र में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन बनार्इ गर्इ और रजिस्ट्रीकृत कोर्इ कम्पनी:
परन्तु यह तब जब कि सभी दशाओं में कम्पनी, निगम, संस्था, संगम या निकाय का, यथास्थिति, रजिस्ट्रीकृत या मुख्य कार्यालय भारत में हो;
(26क)"अवसंरचनात्मक पूंजी कंपनी" से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जो धारा 80झक की उपधारा (4) या धारा 80झकख की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कारबार में पूर्णतया लगे हुए किसी उद्यम या उपक्रम को या धारा 80झख की उपधारा (10) में निर्दिष्ट आवास परियोजना या केन्द्रीय सरकार द्वारा यथावर्गीकृत कम से कम तीन सितारा प्रवर्ग के होटल का सन्निर्माण करने की किसी परियोजना या रोगियों के लिए कम से कम एक सौ बिस्तर के किसी अस्पताल का निर्माण करने की किसी परियोजना का विकास करने और उसे बनाने वाले किसी उपक्रम में, शेयर अर्जित करके या उसे दीर्घकालिक वित्त उपलब्ध कराके विनिधान करती है;
(26ख) "अवसंरचनात्मक पूंजी निधि" से रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 (1908 का 16) के उपबंधों के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी न्यास विलेख के अधीन प्रवर्तनशील ऐसी निधि अभिप्रेत है, जिसे धारा 80झक की उपधारा (4) या धारा 80झकख की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कारबार में पूर्णतया लगे हुए किसी उद्यम या उपक्रम को या धारा 80झख की उपधारा (10) में निर्दिष्ट आवास परियोजना या केंद्रीय सरकार द्वारा यथावर्गीकृत कम से कम तीन सितारा प्रवर्ग के होटल का सन्निर्माण करने की किसी परियोजना या रोगियों के लिए कम से कम एक सौ बिस्तर के किसी अस्पताल का निर्माण करने की किसी परियोजना का विकास करने और उसे बनाने वाले किसी उपक्रम में, शेयर अर्जित करके या दीर्घकालिक वित्त उपलब्ध कराके विनिधान के लिए न्यासियों द्वारा धन जुटाने के लिए स्थापित किया गया है;
(27)[***]
(28) ''आय-कर निरीक्षक'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर निरीक्षक नियुक्त किया जाए;
(28क)"ब्याज" से उधार ली गर्इ धनराशियों या लिए गए ऋण (जिसके अंतर्गत निक्षेप, दावा या इसी प्रकार का अन्य अधिकार या बाध्यता भी है) की बाबत किसी भी रीति में संदेय ब्याज अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत उधार ली गर्इ धनराशियों या लिए गए ऋण या अनुपयोजित प्रत्यय सुविधा की बाबत कोर्इ सेवा फीस या अन्य प्रभार भी है ;
(28ख)"प्रतिभूतियों पर ब्याज" से अभिप्रेत है–
(i) केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार की किसी प्रतिभूति पर ब्याज;
(ii) किसी स्थानीय प्राधिकारी या किसी कम्पनी या केन्द्रीय, राज्य या प्रांतीय अधिनियम द्वारा स्थापित किसी निगम द्वारा या उसकी ओर से धन के लिए जारी डिबेंचरों या अन्य प्रतिभूतियों पर ब्याज;
(28खख) "बीमाकर्ता" से ऐसा बीमाकर्ता अभिप्रेत है जो बीमा अधिनियम, 1938 (1938 का 4) की धारा 2 के खण्ड (7क) में यथापरिभाषित भारतीय बीमा कंपनी है, जिसे उस अधिनियम की धारा 3 के अधीन रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र दिया गया है;
(28ग)"संयुक्त आयुक्त" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन संयुक्त आय-कर आयुक्त या अपर आय-कर आयुक्त नियुक्त किया जाए;
(28घ) "संयुक्त निदेशक" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन संयुक्त आय-कर निदेशक या अपर आय-कर निदेशक नियुक्त किया जाए;
(29) "विधिक प्रतिनिधि" का वही अर्थ है जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 2 के खण्ड (11) में उसका दिया गया है ;
(29क)"दीर्घकालिक पूंजी आस्ति" से ऐसी पूंजी आस्ति अभिप्रेत है जो अल्पकालिक पूंजी आस्ति नहीं है;
(29ख) "दीर्घकालिक पूंजी अभिलाभ" से किसी दीर्घकालिक पूंजी आस्ति के अंतरण से उत्पन्न होने वाला पूंजी अभिलाभ अभिप्रेत है ;
(29खक)"विनिर्माण" से उसके व्याकरणीय परिवर्तनों सहित किसी निर्जीव भौतिक पदार्थ या वस्तु या चीेज़ में ऐसा परिवर्तन अभिपे्रत है,–
(क) जिसके परिणामस्वरूप वह पदार्थ या वस्तु या चीज नए और सुभिन्न पदार्थ या वस्तु या चीज में बदल जाती है जिसका एक भिन्न नाम, स्वरूप और उपयोग होता है; या
(ख) जिससे किसी भिन्न रसायन सम्मिश्रण या एकीकृत संरचना के साथ एक नया और सुभिन्न पदार्थ या वस्तु या चीज अस्तित्व में आ जाती है;
(29ग)"अधिकतम मार्जिन दर" से अभिप्रेत है सुसंगत वर्ष के वित्त अधिनियम में विनिर्दिष्ट किसी व्यष्टि, यथास्थिति, व्यक्तियों के संगम या व्यष्टियों के निकाय की दशा में आय के सर्वोच्च स्लैब के संबंध में लागू होने वाली आय-कर की दर (जिसके अन्तर्गत आय-कर पर अधिभार, यदि कोर्इ हो, भी है);
(29घ) "राष्ट्रीय कर अधिकरण" से राष्ट्रीय कर अधिकरण अधिनियम, 2005 की धारा 3 के अधीन स्थापित राष्ट्रीय कर अधिकरण अभिप्रेत है;
(30) "अनिवासी" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो "निवासी" नहीं है तथा धारा 92†, 93, और 168 के प्रयोजनों के लिए, उसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति भी है जोधारा 6 के खंड (6) के अर्थ में साधारणतया निवासी नहीं है ;
(31) "व्यक्ति" के अंतर्गत निम्नलिखित है–
(i) कोर्इ व्यष्टि,
(ii) कोर्इ हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब,
(iii) कोर्इ कम्पनी,
(iv) कोर्इ फर्म,
(v) कोर्इ व्यक्ति-संगम या व्यष्टि-निकाय, चाहे वह निगमित हो या न हो,
(vi) कोर्इ स्थानीय प्राधिकारी, तथा
(vii) हर ऐसा कृत्रिम विधिक व्यक्ति जो पूर्व उपखण्डों में से किसी के अन्तर्गत नहीं आता।
स्पष्टीकरण.–इस खंड के प्रयोजनार्थ व्यक्ति-संगम या व्यष्टि-निकाय अथवा स्थानीय प्राधिकारी या कृत्रिम विधिक व्यक्ति ऐसा व्यक्ति माना जाएगा चाहे ऐसा व्यक्ति अथवा निकाय अथवा प्राधिकारी अथवा विधिक व्यक्ति आय, लाभ या अभिलाभ पाने के लिए बनाया गया या स्थापित अथवा निगमित किया गया हो अथवा नहीं;
(32) किसी कम्पनी के संबंध में ''व्यक्ति जो कम्पनी में पर्याप्त रूप से हितबद्ध है'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो ऐसे शेयरों का हिताधिकारी स्वामी है जो बीस प्रतिशत से अन्यून मतदान की शक्ति रखने वाले हैं और जो लाभों में हिस्सा लेने के अधिकार सहित या रहित लाभांश की नियत दर के हकदार शेयर नहीं है ;
(33)"विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;
(34) "पूर्ववर्ष" से धारा 3 में यथापरिभाषित पूर्ववर्ष अभिप्रेत है;
(34क) "आय-कर प्रधान मुख्य आयुक्त" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर प्रधान मुख्य आयुक्त नियुक्त किया जाता है;
(34ख) "आय-कर प्रधान आयुक्त" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर प्रधान आयुक्त नियुक्त किया जाता है;
(34ग) "आय-कर प्रधान निदेशक" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर प्रधान निदेशक नियुक्त किया जाता है;
(34घ) "आय-कर प्रधान महानिदेशक" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 117 की उपधारा (1) के अधीन आय-कर प्रधान महानिदेशक नियुक्त किया जाता है;
(35) "प्रधान अधिकारी" से, जब उसका प्रयोग किसी स्थानीय प्राधिकारी या कम्पनी या अन्य लोक निकाय या व्यक्ति-संगम या व्यष्टि-निकाय के प्रति निर्देश करते हुए किया गया हो, अभिप्रेत है—
(क) उस प्राधिकारी, कम्पनी, संगम या निकाय का सचिव, कोषपाल, प्रबंधक या अभिकर्ता, अथवा
(ख) उस स्थानीय प्राधिकारी, कंपनी, संगम या निकाय के प्रबंध या प्रशासन से संबद्ध कोर्इ ऐसा व्यक्ति, जिस पर निर्धारण अधिकारी ने उसे उसका प्रधान अधिकारी मानने के अपने आशय की सूचना तामील की है;
(36) "वृत्ति" के अंतर्गत व्यवसाय भी है;
(36क) "पब्लिक सेक्टर कंपनी" से अभिप्रेत है किसी केन्द्रीय, राज्य या प्रांतीय अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित निगम या कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथा परिभाषित सरकारी कंपनी;
(37) "लोक सेवक" का वही अर्थ है जो भारतीय दंड संहिता, 1860 (1860 का 45) की धारा 21 में है;
(37क) किसी निर्धारण वर्ष या वित्तीय वर्ष के संबंध में "प्रवृत्त दर या दरें" या "प्रवृत्त दरें" से अभिप्रेत है–
(i) धारा 132 की उपधारा (5)के प्रथम परन्तुक के अधीन आय-कर का परिकलन करने या धारा 172 की उपधारा (4) या धारा 174 की उपधारा (2) या धारा 175या धारा 176 की उपधारा (2) के अधीन प्रभार्य आय-कर की संगणना करने या धारा 192 के अधीन "वेतन" शीर्ष के अधीन प्रभार्य आय में से आय-कर की कटौती करने या धारा 115क या धारा 115ख या धारा 115खख या धारा 115खखख या धारा 115ड़ या धारा 164 या धारा 164क या धारा 167ख के अंतर्गत न आने की दशा में अध्याय 17ग के अधीन संदेय "अग्रिम कर" की गणना के प्रयोजनार्थ आय-कर की ऐसी दर या दरें, जो सुसंगत वर्ष के वित्त अधिनियम में इस निमित्त वर्णित हों, और धारा 115क या धारा 115ख या धारा 115खख या धारा 115खखख या धारा 115ड़ या धारा 164 या धारा 164क या धारा 167ख के अंतर्गत आने की दशा में अध्याय 17ग के अधीन संदेय अग्रिम कर की गणना करने के प्रयोजनार्थ, यथास्थिति, धारा 115क या धारा 115ख या धारा 115खखया धारा 115खखख या धारा 115ड़ या धारा 164 या धारा 164क या धारा 167ख में विनिर्दिष्ट दर या दरें या आय-कर की ऐसी दर या दरें जो सुसंगत वर्ष के वित्त अधिनियम में इस निमित्त विनिर्दिष्ट हों, जो भी लागू हो;
(ii) धारा 193, 194, 194क, 194ख, 194खख और 194घ के अधीन कर की कटौती करने के प्रयोजनों के लिए आय-कर की ऐसी दर या दरें जो सुसंगत वर्ष के वित्त अधिनियम में इस निमित्त विनिर्दिष्ट हों;
(iii) धारा 194ठखक या धारा 194ठखख या धारा 194ठखग याधारा 195 के अधीन कर की कटौती करने के प्रयोजनों के लिए, आय-कर की ऐसी दर या दरें जो सुसंगत वर्ष के वित्त अधिनियम में इस निमित्त विनिर्दिष्ट की जाएं अथवा आय-कर की ऐसी दर या दरें जो केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 90 के अधीन किए गए किसी करार में या केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 90क के अधीन अधिसूचित किसी करार में विनिर्दिष्ट की जाएं, जो भी यथास्थिति, धारा 90 या धारा 90कके उपबंधों के आधार पर लागू हों;
(38) ''मान्यताप्राप्त भविष्य निधि'' से वह भविष्य निधि अभिप्रेत है जिसे चौथी अनुसूची के भाग क में दिए गए नियमों के अनुसार प्रधान मुख्य आयुक्त या मुख्य आयुक्त या प्रधान आयुक्त या आयुक्त द्वारा मान्यता दी गर्इ है और जो मान्य बनी हुर्इ हो और इसके अंतर्गत ऐसी भविष्य निधि भी है जो कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 (1952 का 19) के अधीन बनार्इ गर्इ स्कीम के अधीन स्थापित की गर्इ हो ;
(39) [वित्त अधिनियम, 1992 द्वारा 1.4.1993 से लोप किया गया];
(40) ''नियमित निर्धारण'' से ऐसा निर्धारण अभिप्रेत है जो धारा 143 की उपधारा (3) या धारा 144 के अधीन किया गया है;
(41) किसी व्यष्टि के संबंध में "नातेदार" से, उस व्यष्टि का पति, उसकी पत्नी, भार्इ या बहिन अथवा कोर्इ पारंपरिक पूर्व पुरुष या वंशज अभिप्रेत है;
(41क)"पारिणामिक कंपनी" से अभिप्रेत है ऐसी एक या अधिक कंपनियां (जिसके अन्तर्गत उनकी पूर्ण स्वामित्व वाली समनुषंगी भी है) जिनको किसी अविलयन में अविलयित कंपनी का उपक्रम अंतरित कर दिया जाता है और ऐसे उपक्रम के अंतरण के प्रतिफलस्वरूप पारिणामिक कंपनी अविलयित कंपनी के शेयरधारकों को शेयर जारी करती है और इसके अन्तर्गत कोर्इ प्राधिकरण या निकाय या स्थानीय प्राधिकारी या पब्लिक सेक्टर कंपनी या अविलयन के परिणामस्वरूप स्थापित, गठित या बनार्इ गर्इ कोर्इ कंपनी भी है;
(42) "निवासी" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 6 के अर्थ में भारत में निवासी है;
(42क) ''अल्पकालीन पूंजी आस्ति'' से उसके अन्तरण की तारीख से ठीक पहले के छत्तीस मास से अनधिक के लिए निर्धारिती द्वारा धारित कोर्इ पूंजी आस्ति अभिप्रेत है :
परन्तु भारत में किसी मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध (किसी यूनिट से भिन्न किसी प्रतिभूति या भारतीय यूनिट ट्रस्ट अधिनियम, 1963 (1963 का 52) के अधीन स्थापित भारतीय यूनिट ट्रस्ट के किसी यूनिट की दशा में या किसी साधारण शेयरोन्मुख निधि की किसी यूनिट या किसी जीरो कूपन बंधपत्र की दशा में, इस खंड के उपबंध इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो "छत्तीस मास" शब्दों के स्थान पर "बारह मास" शब्द रखे गए हों :
परन्तु यह और कि कंपनी के शेयर (जो किसी मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध शेयर नहीं है) या धारा 10 के खंड (23घ) के अधीन विनिर्दिष्ट पारस्परिक निधि के किसी यूनिट की दशा में, जो 1 अप्रैल, 2014 से प्रारंभ होने वाली और 10 जुलार्इ, 2014 को समाप्त होने वाली अवधि के दौरान अंतरित किए गए हैं, इस खंड के उपबंध इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो "छत्तीस मास" शब्दों के स्थान पर "बारह मास" शब्द रखे गए हों:
परंतु यह भी कि किसी कंपनी के किसी शेयर के मामले में, (जो भारत में किसी मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध शेयर नहीं है) 3[या कोर्इ स्थावर संपत्ति जो भूमि या भवन या दोनों हों]इस खंड के उपबंध इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो ''छत्तीस मास'' शब्दों के स्थान पर, ''चौबीस मास'' शब्द रख दिए गए हों।
स्पष्टीकरण 1.–(i) ऐसी कालावधि का, जिसके लिए निर्धारिती द्वारा पूंजी आस्ति धारित रही है, अवधारण करने में–
(क) जहां शेयर समापनाधीन कंपनी में धारित हो वहां वह अवधि, जो ऐसी तारीख के बाद की हो जिसको वह कंपनी समापनाधीन होती है, छोड़ दी जाएगी;
(ख) जहां पूंजी आस्ति धारा 49 की उपधारा (1) में वर्णित परिस्थितियों में निर्धारिती की संपत्ति हो जाती है, वहां ऐसी अवधि, जिसके लिए उक्त धारा में बताए गए पूर्व स्वामी द्वारा वह आस्ति धारित थी, सम्मिलित कर ली जाएगी;
वित्त अधिनियम, 2018 द्वारा 1.4.2019 से धारा 2 के खंड (42क) में स्पष्टीकरण 1 के उपखंड (ख) के पश्चात् उपखंड (खक) अंत:स्थापित किया जाएगा:
(खक)धारा 28 के खंड (viक) में निर्दिष्ट पूंजी आस्ति की दशा में, अवधि की संगणना इसके संपरिवर्तन या उस रूप में उससे व्यवहार किए जाने की तारीख से की जाएगी।
(ग) जहां भारतीय कंपनी के शेयर या शेयरों के रूप में पूंजी आस्ति धारा 47 के खंड (vii) में निर्दिष्ट अन्तरण के प्रतिफलस्वरूप निर्धारिती की संपत्ति हो जाती है वहां ऐसी अवधि, जिसके लिए समामेलक कम्पनी का शेयर या उसके शेयर निर्धारिती द्वारा धारित थे, सम्मिलित कर ली जाएगी;
(घ) किसी पूंजी आस्ति की दशा में, जो शेयर या कोर्इ अन्य प्रतिभूति है (जिसे इस खण्ड में इसके पश्चात् वित्तीय आस्ति कहा गया है) जिसके लिए निर्धारिती द्वारा ऐसी वित्तीय आस्ति में अभिदाय करने के अपने अधिकार के आधार पर अभिदाय किया जाता है या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा अभिदाय किया जाता है जिसके पक्ष में निर्धारिती ने ऐसी वित्तीय आस्ति में अभिदाय करने के अपने अधिकार का त्याग कर दिया है, अवधि की गणना ऐसी वित्तीय आस्ति के आबंटन की तारीख से की जाएगी;
(ड़) किसी पूंजी आस्ति की दशा में, जो किसी वित्तीय आस्ति में अभिदाय करने का ऐसा अधिकार है जिसका किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में त्याग किया जाता है, अवधि की गणना, प्रस्थापना करने वाली कंपनी या संस्था द्वारा ऐसे अधिकार की प्रस्थापना की तारीख से की जाएगी;
(च) पूंजीगत आस्ति की दशा में, जो वित्तीय आस्ति हो, जो बिना किसी संदाय के और कोर्इ अन्य वित्तीय आस्ति धारित करने के आधार पर आबंटित की गर्इ हो, अवधि की गणना ऐसी वित्तीय आस्ति के आबंटन की तारीख से की जाएगी;
(छ) पूंजी आस्ति की दशा में, जो भारतीय कंपनी में शेयर हो या हों जो, अविलयन के प्रतिफलस्वरूप निर्धारिती की सम्पत्ति बन जाए, वह अवधि सम्मिलित की जाएगी जिसमें अविलयित कंपनी में धारित शेयर निर्धारिती द्वारा धारित था या थे;
(ज)किसी पूंजी आस्ति की दशा में, जो धारा 47 के खंड (xiii) में यथानिर्दिष्ट भारत में मान्यताप्राप्त किसी स्टाक एक्सचेंज के अनपरस्परीकरण या निगमीकरण के अनुसरण में किसी व्यक्ति द्वारा अर्जित भारत में मान्यताप्राप्त किसी स्टाक एक्सचेंज का व्यापार या समाशोधन संबंधी अर्जित अधिकार हों, वह अवधि, जिसके लिए ऐसा व्यक्ति ऐसे अनपरस्परीकरण या निगमीकरण के ठीक पूर्व भारत में मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज का कोर्इ सदस्य था, सम्मिलित कर ली जाएगी;
(जक)किसी पूंजी आस्ति की दशा में, जो धारा 47 के खंड (xiii) में यथानिर्दिष्ट भारत में मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज के अनपरस्परीकरण या निगमीकरण के अनुसरण में किसी कंपनी में आबंटित साधारण शेयर हो या हों या वह अवधि, जिसके लिए ऐसा व्यक्ति ऐसे अनपरस्परीकरण या निगमीकरण के ठीक पूर्व भारत में मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज का कोर्इ सदस्य था, सम्मिलित कर ली जाएगी;
(जख) किसी ऐसी पूंजी आस्ति की दशा में, जो नियोजक द्वारा अपने कर्मचारियों को (जिनमें पूर्ववर्ती कर्मचारी भी है या हैं) प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: मुफ्त या रियायती दर पर आबंटित या अंतरित कोर्इ विनिर्दिष्ट प्रतिभूति या स्वेट साधारण शेयर हैं, वहां अवधि की संगणना ऐसी विनिर्दिष्ट प्रतिभूति या स्वेट साधारण शेयरों के आबंटन या अंतरण की तारीख से की जाएगी;
(जग) किसी ऐसी पूंजी आस्ति की दशा में, जो किसी कारबार न्यास की ऐसी यूनिट है, जो धारा 47 के खंड (xvii) में यथानिर्दिष्ट शेयर या शेयरों के अंतरण के अनुसरण में आबंटित की गर्इ है, वह अवधि सम्मिलित की जाएगी जिसके लिए निर्धारिती द्वारा ऐसा शेयर धारित किया गया था या ऐसे शेयर धारित किए गए थे;
(जघ) किसी ऐसी पूंजी आस्ति, जो कोर्इ यूनिट या यूनिटें हैं, की दशा में जो धारा 47 के खंड (xviii) में निर्दिष्ट किसी अंतरण के प्रतिफलस्वरूप निर्धारिती की संपत्ति हो जाती है, वह कालावधि सम्मिलित होगी जिसके लिए पारस्परिक निधि की समेकन स्कीम में यूनिट या यूनिटें निर्धारिती द्वारा धारित की गर्इ थीं;
(जड़) किसी ऐसी पूंजी आस्ति, जो किसी कंपनी का शेयर है या के शेयर हैं, की दशा में, जिसका किसी अनिवासी निर्धारिती द्वारा धारित धारा 115कग की उपधारा (1) के खंड (ग) में निर्दिष्ट सार्वत्रिक निक्षेपागार रसीदों के मोचन पर ऐसे निर्धारिती द्वारा अर्जन किया जाता है, अवधि की संगणना उस तारीख से की जाएगी जिसको ऐसे मोचन के लिए अनुरोध किया गया था;
4[(जच) किसी ऐसी पूंजी आस्ति की दशा में, जो किसी कंपनी का साधारण शेयर है, धारा 47 के खंड (xख) में निर्दिष्ट किसी अंतरण के प्रतिफलस्वरूप निर्धारिती की संपत्ति हो गर्इ है, वहां वह कालावधि, जिसके लिए निर्धारिती द्वारा अधिमानी शेयर धारित किए गए थे, सम्मिलित कर ली जाएगी;]
5[(जछ) किसी ऐसी पूंजी आस्ति, जो कोर्इ यूनिट या यूनिटें हैं, की दशा में, जो धारा 47 के खंड (xix) में निर्दिष्ट किसी अंतरण के प्रतिफलस्वरूप निर्धारिती की संपत्ति हो जाती है, वह कालावधि जिसके लिए पारस्परिक निधि स्कीम की समेकित योजना में यूनिट या यूनिटें निर्धारिती द्वारा धारित की गर्इ थीं, सम्मिलित कर ली जाएगी;]
(ii) खण्ड (i) में वर्णित पूंजी आस्तियों से भिन्न पूंजी आस्तियों की बाबत, ऐसी अवधि का जिसके लिए कोर्इ पूंजी आस्ति निर्धारिती द्वारा धारित रही है, किन्हीं ऐसे नियमों के, अधीन रहते हुए, जिन्हें बोर्ड इस निमित्त बनाए अवधारण किया जाएगा।
स्पष्टीकरण 2.–इस खंड के प्रयोजनों के लिए, "प्रतिभूति" पद का वही अर्थ है जो प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2 के खंड (ज) में उसका है।
स्पष्टीकरण 3–इस खंड के प्रयोजनों के लिए, "विनिर्दिष्ट प्रतिभूति" और "स्वेट साधारण शेयर" पदों का वही अर्थ होगा जो धारा 115बख की उपधारा (1) के खंड (घ) के स्पष्टीकरण में है;
स्पष्टीकरण 4–इस खंड के प्रयोजनों के लिए, "साधारण शेयरोन्मुख निधि" का वही अर्थ होगा, 5क[जो धारा 10 के खंड (38) के स्पष्टीकरण] में उसका है;
(42ख) ''अल्पकालिक पूंजी अभिलाभ'' से किसी अल्पकालिक पूंजी आस्ति के अंतरण से प्रोदभूत होने वाला पूंजी अभिलाभ अभिप्रेत है;
(42ग) "स्लंप विक्रय" से एकमुश्त प्रतिफल पर विक्रय के परिणामस्वरूप जो ऐसे विक्रयों में व्यष्टिक आस्तियों और दायित्वों का मूल्य लगाये बिना एक या अधिक उपक्रमों का अंतरण अभिप्रेत है।
स्पष्टीकरण 1.–इस खंड के प्रयोजनों के लिए "उपक्रम" का वही अर्थ होगा जो उसका खंड (19कक)के स्पष्टीकरण 1 में दिया गया है।
स्पष्टीकरण 2.–शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषणा की जाती है कि स्टाम्प शुल्क, रजिस्ट्रीकरण फीस या अन्य वैसे ही कर या फीस देने के एकमात्र प्रयोजन के लिए किसी आस्ति या दायित्व के मूल्य का अवधारण अलग-अलग आस्तियों या दायित्वों के मूल्य का समनुदेशन नहीं माना जाएगा;
(43)"कर" से 1 अप्रैल, 1965 को प्रारम्भ होने वाले निर्धारण वर्ष और किसी पश्चात्वर्ती निर्धारण वर्ष के संबंध में ऐसा आय-कर अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन प्रभार्य हो तथा किसी अन्य निर्धारण वर्ष के संबंध में ऐसा आय-कर और अधिकर अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन पूर्वोक्त तारीख से पूर्व प्रभार्य हो और 1 अपै्रल, 2006 को प्रारंभ होने वाले निर्धारण वर्ष और किसी पश्चात्वर्ती निर्धारण वर्ष के संबंध में, कर के अंतर्गत धारा 115बक के अधीन संदेय अनुषंगी फायदा कर है;
(43क) "प्रतिदेय-कर प्रमाणपत्र" से वह प्रतिदेय-कर प्रमाणपत्र अभिप्रेत है जो अध्याय 22ख के उपबंधों और उसके अधीन बनार्इ गर्इ किसी स्कीम के अनुसार किसी व्यक्ति को दिया गया हो;
(43ख) [* * *]
(44) "कर वसूली अधिकारी" से ऐसा आय-कर अधिकारी अभिप्रेत है, जिसे कर वसूली अधिकारी की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए, और ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कृत्यों का पालन करने के लिए भी, जो इस अधिनियम के अधीन निर्धारण अधिकारी को प्रदत्त किए या सौंपे गए हैं तथा जो विहित किए जाएं, प्रधान मुख्य आयुक्त या मुख्य आयुक्त या प्रधान आयुक्त या आयुक्त लिखित रूप में साधारण या विशेष आदेश द्वारा, प्राधिकृत किया जाए;
(45) "कुल आय" से धारा 5 में निर्दिष्ट आय की ऐसी कुल रकम अभिप्रेत है जो इस अधिनियम में वर्णित रीति से संगणित की गर्इ हो;
(46) [* * *]
(47) पूंजी आस्ति के संबंध में, "अंतरण" के अंतर्गत है—
(i) आस्ति का विक्रय, विनिमय या त्याग; या
(ii) उसमें के किन्हीं अधिकारों की समाप्ति; या
(iii) किसी विधि के अधीन उसका अनिवार्य अर्जन; या
(iv) किसी ऐसी दशा में जहां आस्ति उसके स्वामी द्वारा अपने द्वारा चलाए जाने वाले किसी कारबार के व्यापार स्टाक में परिवर्तित की जाती है या उसके द्वारा उस रूप में मानी जाती है वहां ऐसा परिवर्तन होना या माना जाना; या
(ivक) किसी जीरो कूपन बंधपत्र की परिपक्वता या मोचन; या
(v) कोर्इ संव्यवहार जिसमें संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (1882 का 4) की धारा 53क में बतार्इ गर्इ प्रकृति की संविदा के आंशिक पालन में किसी स्थावर संपत्ति का कब्जा लेने या रखे रखने के लिए अनुज्ञात किया जाता है; या
(vi) कोर्इ संव्यवहार (चाहे वह किसी सहकारी सोसाइटी, कंपनी या अन्य व्यक्ति-संगम का सदस्य बन कर हो या उसमें शेयर लेकर हो या किसी करार या किसी ठहराव द्वारा हो अथवा किसी दूसरे ढंग से हो) जिसका प्रभाव किसी स्थावर संपत्ति का अंतरण है या उसके उपभोग के लिए समर्थ बनाया जाना है।
स्पष्टीकरण 1.–उपखंड (v)और उपखंड (vi) के प्रयोजनों के लिए, "स्थावर संपत्ति" का वही अर्थ है जो धारा 269पक के खंड (घ) में उसका है।
स्पष्टीकरण 2.–शंकाओं को दूर करने के लिए यह स्पष्ट किया जाता है कि "अंतरण" के अंतर्गत किसी करार द्वारा (चाहे वह भारत में किया गया हो या भारत के बाहर) या अन्यथा प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत:, आत्यंतिक रूप से या सशर्त, स्वैच्छिक रूप से या अस्वैच्छिक रूप से, किसी आस्ति या उसमंप के किसी हित का व्ययन या त्यजन या किसी आस्ति में, किसी भी रीति में, किसी हित का सृजन, इस बात के होते हुए भी सम्मिलित है और सदैव से सम्मिलित समझा जाएगा कि अधिकारों के ऐसे अंतरण का उल्लेख इस रूप में किया गया है कि वह भारत के बाहर रजिस्ट्रीकृत या निगमित कंपनी के किसी शेयर या शेयरों का अंतरण करके किया गया है या उस पर निर्भर है या उससे उद्भूत हुआ है;
(48) "जीरो कूपन बंधपत्र" से ऐसा बंधपत्र अभिप्रेत है,–
(क) जो किसी अवसंरचनात्मक पूंजी कंपनी या अवसंरचनात्मक पूंजी निधि या पब्लिक सेक्टर कंपनी या अनुसूचित बैंक द्वारा 1 जून, 2005 को या उसके पश्चात् जारी किया जाता है;
(ख) जिसके संबंध में, परिपक्वता या मोचन से पूर्व अवसंरचनात्मक पूंजी कंपनी या अवसंरचनात्मक पूंजी निधि या पब्लिक सेक्टर कंपनी या अनुसूचित बैंक से कोर्इ संदाय और फायदा प्राप्त नहीं किया जाता है या प्राप्य नहीं है; और
(ग) जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
स्पष्टीकरण–इस खंड के प्रयोजनों के लिए, "अनुसूचित बैंक" पद का वही अर्थ होगा जो धारा 36 की उपधारा (1) के खंड (viiक) के उपखंड (ग) के स्पष्टीकरणके खंड (ii) में उसका है।
1. वित्त अधिनियम, 2018 द्वारा 1.4.2018 से अंत:स्थापित।
2. वित्त अधिनियम, 2017 द्वारा 1.4.2017 से अंत:स्थापित।
* ''उपखंड'' पढ़ा जाना चाहिए ।
* अब गोवा राज्य।
† 92ख पढा जाना चाहिये।
3. वित्त अधिनियम, 2017 द्वारा 1.4.2018 से अंतस्थापित।
4. वित्त अधिनियम, 2017 द्वारा 1.4.2018 से अंत:स्थापित।
5. वित्त अधिनियम, 2017 द्वारा 1.4.2017 से अंत:स्थापित।
5क. वित्त अधिनियम, 2018 द्वारा 1.4.2019 से "धारा 10 के खंड (38) के स्पष्टीकरण" के स्थान पर "धारा 112क के स्पष्टीकरण के खंड (क)" शब्द प्रतिस्थापित किये जाएगे।
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